CNBC आवाज़ के इस सुरीले पत्रकार के शौक हैं चुनिंदा संगीत, चुनिंदा किताबें, चुनिंदा दोस्त. इन तीनों चीजों को गिरिजेश बहुत सहेज कर रखते हैं। उनके दिलजलाऊ कलेक्शन में मैं अकेला ordinary सामान हूँ. हमारी दोस्ती करीब चार साल की होने वाली है, अब तो अपने पैरों पर खूब चलती है, ज़ुबान भी खासी साफ हो गयी है। वो चाहते हैं की हम जितनी जल्दी हो सके उसे शराफत-सलीके सीखने स्कूल भेज दें । मैं हूँ की अपने आँगन में नंगी घूमती-इठलाती, शरारतें करती इस दोस्ती पर इस कदर फ़िदा हूँ की उसे उस स्कूल भेजना ही नहीं चाहता. सुनते हैं वहाँ छोटे बच्चों को छड़ी से पीटते हैं. चलिए छोड़िये ये हमारा पर्सनल किस्सा है।
Monday, May 26, 2008
गिरिजेश भाई
CNBC आवाज़ के इस सुरीले पत्रकार के शौक हैं चुनिंदा संगीत, चुनिंदा किताबें, चुनिंदा दोस्त. इन तीनों चीजों को गिरिजेश बहुत सहेज कर रखते हैं। उनके दिलजलाऊ कलेक्शन में मैं अकेला ordinary सामान हूँ. हमारी दोस्ती करीब चार साल की होने वाली है, अब तो अपने पैरों पर खूब चलती है, ज़ुबान भी खासी साफ हो गयी है। वो चाहते हैं की हम जितनी जल्दी हो सके उसे शराफत-सलीके सीखने स्कूल भेज दें । मैं हूँ की अपने आँगन में नंगी घूमती-इठलाती, शरारतें करती इस दोस्ती पर इस कदर फ़िदा हूँ की उसे उस स्कूल भेजना ही नहीं चाहता. सुनते हैं वहाँ छोटे बच्चों को छड़ी से पीटते हैं. चलिए छोड़िये ये हमारा पर्सनल किस्सा है।
Friday, May 23, 2008
मौत ने चुना मेरा घर
Wednesday, May 21, 2008
आँचल
आँचल एक शैतान लड़की है. शरारत उसकी आंखों से हमेशा झांकती रहती है, हालांकि बात बात पर हलकान हो जाने वाली इस लड़की को ज़रा सी देर तक देखो तो वो एक छोटे मासूम बच्चे में बदल जाती है जिसके पास बहुत सारे मासूम से पर मुश्किल सवाल हैं. वो आपसे ज़िंदगी के मुश्किल से मुश्किल सवाल इस आसानी और मासूमियत से पूछ लेगी जैसे उनका जवाब आप पल भर में अंगुलियों पर जोड़ कर दे देंगे. ये बात ही वो बात है जो आँचल को पूरी दुनिया से अलग खड़ा करती है।
NDTV की ये स्टार रिपोर्टर इस साल अपनी एक बेहतरीन स्टोरी के लिए CNN Young Journalist of the Year चुनी गई है. बासो के लिए इस बदमाश लड़की ने तीन शानदार किताबें दी हैं।
संदीप
NDTV के वरिष्ठ पत्रकार संदीप भूषण मुझे किसी फिल्मकार की कल्पना के पत्रकार लगते हैं. चेहरा-मोहरा, हाव-भाव, अंदाज़, पहनावा, चाल-ढाल सब कुछ वैसा जैसा अगर रंग और ब्रुश लेकर हम एक पत्रकार को ड्राइंग शीट पर बनाने बैठें. इससे हटकर कुछ ऐसा भी जो दिखलाने में रंग और ब्रुश नाकाफी हों; मसलन उनकी चिंताएं और सरोकार. वो अपनी सादगी पर ख़ुद आत्ममुग्ध नहीं हैं, अपनी इमानदार बेचैनी पर ख़ुद नहीं मर मिटे हैं. यही ख़ास है संदीप में.
News room में उनसे बासो पर बात हुई, बच्चों के लिए लाइब्रेरी शुरू करने पर चर्चा हुई तो उन्होंने उसका स्वागत किया. अपनी हामी उन्होंने अपने सहयोग से दी. वो अपने बेटे रुद्र की कहानी की किताबों का खजाना उठा लाये. एक से एक कहानियां. सिंदबाद जहाजी से लेकर, पंचतंत्र की चुनिंदा कहानियों तक. पहली लाइब्रेरी शुरू हुई तो सबसे ज्यादा हिट रुद्र का संकलन ही रहा.
संध्या
अपना कुछ सबसे प्यारा उठाकर किसी को दे देने में गज़ब सुख होता है लेकिन इसका अनुभव कम लोग ही कर पाते हैं. संध्या ने जब इस सुख को समझा तो वो बासो लाइब्रेरी के लिए एक ऐसा खजाना उठा लाई जो उसने बचपन से लेकर अब तक बहुत एहेतियात से संजोया था. ये थे नेशनल जेओग्रफिक के २१ अंक. ये संकलन उसने कभी अपने सबसे प्यारे दोस्तों को भी छूने नहीं दिया।
Sunday, May 11, 2008
माँ के लिए
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे आधी सोयी-आधी जगी
थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़ियों की चहकार से गूंजे
राधा-मोहन..अली-अली
मुर्गे की आवाज़ पे खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ
माँ-बेटी- बहन-पड़ोसन
थोडी-थोडी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा...माथा
...आंखें जाने कहाँ गई
फटे-पुराने इक एल्बम में
चंचल लड़की जैसी माँ.
Tuesday, May 6, 2008
शहद में डूबा ख़त
"ज्ञान का बोझ मत कहिए। व्यंग्य सा लगता है। आपके हाथ तो किताबों के बोझ से दुख रहे हैं, और ईश्वर करे ये बोझ बढ़ता ही चला जाए।बासो का सपना जितना खूबसूरत और अनूठा है, इसकी शुरुआत की कहानी भी उतनी ही प्यारी है। ढेर सारी बधाइयां। बासो के लिए मेरी लाइब्रेरी में भी कुछ किताबें हैं, कैसे पहुंचाऊं?"
Monday, May 5, 2008
ज्ञान का बोझ
लंबे अरसे की आरामतलबी के बाद हाथों का वो पुराना दर्द फिर जागा है. इस बार अपनी पहली बासो लाइब्रेरी के लिए. हुआ यूं की हमें सेक्टर के आर डब्ल्यू ए ने जगह नहीं दी तो सोचा की इतने पैसे तो हैं नहीं की कोई जगह किराये पर ली जा सके. सब्र बाढ़ के दिनों में गंगा जी के किनारे की तरह वक्त के हर थपेडे के साथ पानी में घुलता जा रहा था. तय किया की अब और इंतज़ार नहीं हो सकता, नोएडा के सेक्टर ५६ के डी ब्लाक के पार्क में ही लाइब्रेरी शुरू कर दी जाए. मैं और मेरी दीदी झटपट बाज़ार गए और चार चटाइयां, एक प्लास्टिक का ब्लैकबोर्ड एक चोक का डिब्बा, दो रजिस्टर और ऐसा ही कुछ दूसरा छोटा मोटा सामन खरीन लाये और शाम को ये सामान ले कर सीधे पार्क में जा धमाके. इतने में मित्र डॉक्टर उपेन्द्र, उनके दो बेटे, इंजीनियरिंग के छात्र सिद्धार्थ भी घर आ गए. इन लोगों के साथ किताबें और बाकी का सामान ले कर हम सीधे सामने के पार्क में जा धमके ।
सिद्धार्थ ने ब्लैक बोर्ड पर बासो लाइब्रेरी का नाम और जानकारी लिखी. इस बोर्ड को हवा की तमाम बद्तामीजियों के खिलाफ एक पेड़ से अनुशासित कर लटकाया गया. दीदी ने चटाइयां बिछाईं और तब तक मैं घर से तीन चार चक्करों में करीब तीन सौ पुस्तकों का साझा खजाना उठा लाया. डॉ उपेन्द्र के बेटे भारत और पार्थसारथी वालंटियर बन गए. किताबें बिछीं तो आस पास खेल रहे बच्चे कौतूहल से जुटे. ये जानकर की किताबें उनके लिए ही हैं, उनकी खुशी अव्यवस्था बनकर फैल गयी. पाँच साल की बुलबुल और दस साल की मणिकर्णिका तुरंत व्यवस्थापक बन गयीं. और बासो की पहली लाइब्रेरी शुरू हो गई. बच्चों का उत्साह देखने लायक था और शायद मेरा भी. मेरी पत्नी पूनम के पिता जी हमारे घर आए हुए थे. मैं बासो को ले कर जो हवाई किले बनाता था उनकी नाप जोख का जिम्मा उनपर था. लाइब्रेरी शुरू होने के वक्त वो भी पार्क में मौजूद थे. जब किताबों को लेने, छूने, पढ़ने को लेकर बच्चों में होड़ लगी थी तो उन्होंने मेरे पास आकर कहा, अच्छा हुआ की हमें कम्यूनिटी सेंटर में जगह नहीं मिली.
यहाँ एक बात कहानी बहुत जरूरी है. सबसे ज्यादों उत्साह नन्हें रुद्र की किताबों को लेकर रहा. रुद्र मेरे दोस्त और NDTV के पत्रकार संदीप भूषण का बेटा है. उसने बासो की इस लाइब्रेरी की लिए अपनी सबसे प्यारी बहुत सारी किताबें दी हैं. मैं नहीं जानता की जब शनिवार शाम करीब छः बजे लाइब्रेरी शुरू हो रही थी, नन्हा रुद्र कहाँ था और क्या कर रहा था लेकिन इतना पक्के तौर पर कह सकता हूँ की उसे उस वक्त अचानक बहुत अच्छा लगा होगा, मुस्कुराने का मन किया होगा. हवा के एक झोंके के साथ बहुत से नन्हें दोस्तों की आवाज़ ने उसे छूकर कहा होगा – “शुक्रिया रुद्र.”
आज इस लाइब्रेरी का दूसरा दिन था और तीसरा सेशन. बात साफ करता चलूँ. मुश्किल ये है की ये लाइब्रेरी है नर्म घास के ऊपर और खुले आसमान के नीचे. न तो ये अंधेरे में चल सकती है और न चटकती दोपहर में। इसलिए फिलहाल तय ये हुआ है की लाइब्रेरी सुबह छः बजे से आठ बजे तक चलेगी और शाम को सार्हे (half past) पाँच बजे से सार्हे सात बजे तक. सोमवार और शुक्रवार को लाइब्रेरी बंद रहेगी और बाकी जब बरखा रानी की कृपा हो जाए. तो हर बार लाइब्रेरी का वक्त शुरू होने से पहले तीन सौ किताबों में बंद ज्ञान कुछ थैलों में रखकर पार्क तक पहुंचाना होता है और फिर लाइब्रेरी का वक्त ख़त्म होने के बाद ये थैले वापस उठाकर घर लाने होते हैं. ज्ञान के इसी बोझ से हाथ दुःख रहे हैं और २४ साल पहले का वक्त याद आ गया. उस वक्त की तरह ये दर्द भी अच्छा लग रहा है।
Sunday, May 4, 2008
चिट्ठी आयी है
ये हैं कमेंट्स जो जवाब में आए हैं। दरख्वास्त ये है की अगर anonymous ऑप्शन भी लें तो भी पोस्ट के आख़िर में अपना नाम ज़रूर लिख दें। सुविधा के लिए देवनागरी में ये चिट्ठी पेश है।
लौ दे उठे वो हर्फ़-ऐ-तलब सोच रहे हैं,
क्या लिखिए सर-ऐ-दामन-ऐ-शब सोच रहे है।
क्या जानिए मंजिल है कहाँ जाते हैं किस सिम्र्त,
भटकी हुई इस भीड़ में सब सोच रहे हैं।
भीगी हुई एक शाम की दहलीज़ पे बैठे ,
हम दिल के धड़कने का सबब सोच रहे हैं।
इस लहर के पीछे भी रवां हैं नई लहरें,
पहले नहीं सोचा था जो अब सोच रहे हैं।
हम उभरे भी डूबे भी सियाही के भंवर में,
हम सोये नहीं शब-हमा-शब सोच रहे हैं।
[siyaahii = darkness; bha.Nvar = whirlpool][shab-hamaa-shab = night after night]
Thursday, May 1, 2008
BASO Family
BASO is a very fast expanding family. We at BASO feel that it’s a collective endeavor where you can come and participate by being a part of it. Everybody can participate and contribute in his/her own special way. So we in BASO family have people who have helped it grow from an idea to a programme. There are others who contributed there time and resources in getting it registered with Registrar of Companies. Some others contributed books for the first BASO library and some of them decided to contribute money to run BASO programmes.
It’s impossible to name each and everyone. Some of us want to work silently and don’t want to be named so I have to respect their sentiments also. But there are others whose contribution to the cause has been great and not mentioning their names will be difficult. This journey would have been longer and hard had they not come along. Everybody’s contribution is very-very special in its own special way. I find it my duty to introduce BASO family members to each other. So, next few posts will be about you all, one by one. I will also keep you posted about developments at BASO. BASO accounts and list of donated books and donors will also be posted very soon. These two things will be updated on a regular basis.